अगर कोई व्यक्ति बिना कारण 10 साल का कारावास की सजा काटे और उसके बाद वो निर्दोष घोषित हो जाए तो क्या ऐसी स्थिति में न्यायालय या विरोधी वकील पर केस किया जा सकता है?

 जनाब आपने बहुत दुःखदायी विषय को छेड़ दिया है, ऐसा एक नही अनेको लोगो के साथ होता है कि वो बरसो जेल में रहते है और अंत मे वो निर्दोष निकलते है और अदालत उनको रिहा कर देती है।


सालो जेल में रहने के कारण उनकी पूरी जिंदगी ठहर जाती है, उम्र गुज़र जाती है, अपने बिछड़ जाते है। ऐसे लोगो की तकलीफों का अंदाज़ा लगा पाना नामुमकिन है। किसी की जिंदगी का मुववज़ा कोई भी कीमत हो ही नही सकती। एक जिंदगी जो गुजर गई वो गुजरे साल कोई नही लौटा सकता।

अब आपने पूछा है कि क्या वकील के ऊपर केस किया जा सकता है तो जनाब वकील तो सरकार का या आपके विरोधी का प्रतिनिधि मात्र होता है, उसको वो ही कहना होता है जो उसको सरकारी वकील होने पर पुलिस कहने को कहती है और प्राइवेट मामलों में जो आपका विरोधी कहता है वो ही वो वकील कोर्ट में कहता है। इसलिए किसी भी हालत में वकील को आप दोषी नही ठहरा सकते।

अब रही न्यायालय की तो आप न्यायालय को दोषी समझ सकते है, परंतु असल दुश्मन न्यायलय नही होता, असली दुश्मन होती है सरकार, क्योंकि आपके केस में आप बिना आखिरी फैसला आये इतने सालों से जेल में रहे क्योंकि सरकार ने कभी इस न्याय व्यवस्था को सुधारने का कोई प्रयास ही नही किया, अदालतों और जजो की संख्या को बढ़ाने तथा अंग्रेज़ो के ज़माने के कानूनों को बदलने की जिम्मेदारी सरकारों के पास होती है ना कि न्यायालयों के।

अब क्योंकि जजो की कम संख्या है इस कारण स्पीडी जस्टिस यानी त्वरित न्याय संभव ही नही, इसलिए लोग इंसाफ की आस में सालो निर्दोष होते हुए भी जेलों में सज़ा काट रहे है।

अब यहाँ आपको एक और महत्वपूर्ण बात बताना चाहूँगा की दोषी का न्यायलय से बरी होने का कतई ये मतलब नही होता कि वो निर्दोष था। आप सोचेंगे ये कैसे हो सकता है, जब न्यायलय ने बरी कर दिया तो इसका तो ये ही मतलब हुआ कि वो निर्दोष था।

जनाब ऐसा नही है। क्योंकि क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में प्रॉसिक्यूशन को अपने केस को बियॉन्ड ऐनी डाउट यानी बिना किसी शक के साबित करना होता है, इसका सीधा सा मतलब ये हुआ कि यदि सिर्फ शक ही पैदा कर दिया जाए कि आरोपी दोषी हो भी सकता है और नही भी, तब ऐसी सूरत में आरोपी को बेनिफिट ऑफ डाउट का यानी संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया जाता है।

उपरोक्त परिस्थिति में आप ये नही कह सकते कि आरोपी निर्दोष था या केस झूठा था। ऐसी सूरत में ये कहा जाएगा कि प्रॉसिक्यूशन अपना केस संदेह से परे साबित करने में नाकाम रहा इसलिए आरोपी को रिहा किया जाता है।

अब आते है झूठे केसेस आखिर होते कौनसे है, और क्या उन केसेस में मुवावजे की तथा झूठे केस करने वाले को सज़ा दिलवाने की मांग की जा सकती है।

तो जनाब ये वो केसेस होते है जहाँ अदालत में आपके खिलाफ झूठे बयान दिए गए हो, झूठी गवाही दी गई हो, और आपने ऐसे झूठ को झूठ साबित किया हो या न्यायलय ने ऐसा झूठ पकड़ लिया हो। ऐसा होने पर कोर्ट खुद ही ऐसे झूठे मामलों का संज्ञान लेकर झूठ बोलने वालों को सज़ा देता है, क्योंकि वो झूठ भले ही आपके विरुद्ध बोला गया हो, परंतु बोला क्योंकि अदालत से गया था इसलिए अदालत ही झूठ बोलने वाले को सज़ा देती है।

अब अगर झूठ बोलने वाले कि वजह से आपको केस में फसाया गया और आपको जेल में रहना पड़ा या कोई भी अन्य तरह के नुकसान उठाने पड़े तो आप मुवावजे के लिए सिविल कोर्ट में मुकदमा करके झूठ बोलकर आपको केस में फसाने वालो से हर्जाना वसूल कर सकते है। धन्यवाद।

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